Hello friends,,
आज हम उस असीम भंडार की बात करेगे जिसे हमने nature से प्राप्त किया है l जिन पर मे और आप गर्व करते है यह वही भंडार है जिन्हे हम संसाधन के रूप में पुकारते है l
जी हाँ कल-कल करती नदियाँ , उँचे पर्वत बडे-बडे समुद्र और ऐसे अनेको संसाधन जिनको हम पर्यावरण कहते है
एक समय वो था जब प्रकृति के साथ मनुष्य का समन्वय ज्यादा घनिष्ठतापूर्ण थे परंतू अब मनुष्य प्रकृति के आमने सामने हो गया है आैर अपनी सुख संमृद्धि के लिए प्रकृति का निरंतर शोषण करता जा रहा है l
क्या है पर्यावरण संकट ?
जो प्रकृति हमेशा दिल खोलकर अपनी संपदा मनुष्य और जीवों पर लुटाती रही है , उससे सबकुछ हासिल करने के चक्कर मे मनुष्य ने अपने आपको नए संकट मे डाल लिया है यह है प्रदूषण, प्राकृतिक आपदा, समुद्री सतह, वैश्विक तापवृद्धी यानी पर्यावरण मे आ रही निरंतर गिरावट l
पर्यावरण संरक्षण मे क्यों विकसित देशौं की जिम्मेदारी ज्यादा होनी चाहीए ?
पर्यावरण को लेकर उत्तरी व दक्षिणी गोलार्द की पर्याप्त संरक्षण की सांझी जिम्मेदारी होनी चाहीए , परंतू विकासशील देशों का तर्क है कि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुँचाया है इसलिए संरक्षण की जिम्मेदारी भी उनकी ज्यादा होनी चाहीए थी l विकासशील देशों पर लागू की जाएं l 1997 मे लागू 'क्योटो प्रोटोकॉल' की बाध्यताओ से भी भारत-चीन व अन्य विकासशील देशों को अलग रखा गया l
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